प्रकृति से लड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है।

नीचे लगी तस्वीर टिड्डी दलों के हमलों के दायरे को दर्शाने के लिए लगाई गई है। ताकि, यह समझा जा सके कि यह किसी एक देश की समस्या नहीं है और कोई एक देश इससे अकेले निपट भी नहीं सकता। हम सब एक ही धरती के बाशिंदे हैं और मौसम हो या जलवायु, हम सब साझा करते हैं।

काश, विज्ञान हमारा धर्म होता...

टिड्डी दलों के हमले ने पाकिस्तान के किसानों की फसलें चट कर डाली हैं। यह इतने बड़े पैमाने पर हुआ है कि शनिवार को पाकिस्तान की सरकार ने टिड्डी दलों के हमले को नेशनल एमरजेंसी घोषित कर दिया है। एक छोटे से कीड़े से निपटने के लिए तमाम उपाय किए जा रहे हैं। यह छोटा सा कीड़ा इंसानी तरकीबों को हराने पर तुला हुआ है।

माना जा रहा है कि इससे निपटने पर सात अरब से भी ज्यादा रुपयों का खर्च आएगा। टिड्डी दलों के हमले से भारत के पंजाब, राजस्थान और गुजरात के किसानो की भी हालत पतली है। फर्क बस इतना है कि यह खबरें आजकल हमारे यहां प्रमुखता से स्थान नहीं पातीं। टिड्डी दलों से निपटने में ही न सिर्फ अरबों रुपये का खर्च आएगा बल्कि वे अरबों रुपये की फसलों को चटकर लोगों को भुखमरी की तरफ भी धकेल रहे हैं।

यह कोई ढकी-छुपी बात नही है कि इन टिड्डी दलों के हमले के पीछे कारण क्या है। अगर आप गौर करें तो आप देखेंगे कि यह एक ही दैत्य है जो आस्ट्रेलिया में आग भी लगाता है। फिर उसे बाढ़ में भी डुबोता है। यही दैत्य है जिसके चलते दुनिया के तमाम ग्लैशियरों के समाप्त हो जाने का खतरा पैदा हो गया है। इसी के चलते दुनिया की तमाम नदियां सूखने की कगार पर है। दुनिया की बड़ी आबादी असामान्य सर्दियों और असामान्य गर्मियों का सामना कर रही है। यही दैत्य समुद्र तल से कम ऊंचाई पर रहने वाले देशों यानी एटॉल नेशन को डुबोने पर तुला हुआ है।

इस दैत्य का नाम क्लाईमेट क्राइसिस है। दुनिया भर में हम इतनी सारी चीजें जलाते हैं कि उससे निकलने वाली गर्मी ने पूरी धरती के तापमान में इजाफा कर दिया है। यह तापमान इतना बढ़ गया है कि पृथ्वी के ध्रुवों पर जमा बर्फ तेजी से पिघल रही है। हिमनद सूख रहे हैं। जंगलों से नमी कम हो रही है। इसके चलते इस धरती के ही समाप्त होने का खतरा हमारे सामने जितना स्पष्ट अब है, उतना शायद पहले कभी नहीं रहा।

दुनिया की अलग-अलग भौगोलिक परिस्थितियों में अलग-अलग मानव सभ्यताओं का विकास हुआ। इसी अनुसार यहां पर संस्कृति और धर्म का उदय हुआ है। दुनिया की सभी सभ्यताओं में धर्म पैदा हुआ है, इसलिए सहज ही यह माना जा सकता है कि एक समय यह मानव समाज के लिए बहुत बड़ी जरूरत थी। इसने लोगों को किसी एक सूत्र में बांधने, उन्हें कानून और नैतिकता के दायरे में लाने का काम किया। लेकिन, आज अगर हम गौर करें तो क्या सचमुच धर्म की सकारात्मक भूमिका रह गई है। ऐसा लगता है कि इसकी सकारात्मक भूमिका खत्म हुए भी सैकड़ों साल हो गए हैं। अब सिर्फ इसकी नकारात्मक भूमिका ही शेष रह गई है।

आधुनिक मानव का धर्म तर्क और विज्ञान को होना चाहिए। विज्ञान को ही वह चालक शक्ति होना चाहिए जो व्यक्ति और समाज की दशा निर्धारित करे। लेकिन, अभी भी तमाम जगहों पर विज्ञान को उसके सिंघासन पर बैठने से रोका जा रहा है। आज के समय में भी पुराने धर्म से काम चलाना आधुनिक युग में पेड़ की छाल पहनकर रहने जैसा ही है।

धरती को बचाना है तो विज्ञान की सुनो। किसी के धर्म की मत सुनो। जाति की मत सुनो। पूंजीपतियों और कारपोरेट के मुनाफे की तो कतई मत सुनो।

विज्ञान की सुनो। वही इस धरती को समाप्त होने से बचा सकता है।

धरती तमाम तरह से खतरे का संकेत दे रही है। लेकिन, क्या हम अपने पूर्वाग्रहों को छोड़कर उसे सुनने को तैयार भी हैं।


(नीचे लगी तस्वीर टिड्डी दलों के हमलों के दायरे को दर्शाने के लिए लगाई गई है। ताकि, यह समझा जा सके कि यह किसी एक देश की समस्या नहीं है और कोई एक देश इससे अकेले निपट भी नहीं सकता। हम सब एक ही धरती के बाशिंदे हैं और मौसम हो या जलवायु, हम सब साझा करते हैं।

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