हिंदुस्तान में नवाबो का शहर लखनऊ के बारे में दिलchasp बाते

शहर ऐ लखनऊ का दिल कहे जाने वाले ज़रतगंजकी बनावट जितना लोगो को करीब लाती है वही इसका इतिहास भी दिलचस्प है।
नवाब नसीरिद्दुन हैदर ने 1857 में चीन, जापान और बेल्जियम के shahar की अनुभूति dikhane का प्रयास किया गया है।

Kaisar bagh, लालबाग़, और   Darulshafa के साथ ही छोटी छत्तर मंज़िल, तारावाली कोठी, दरगह और सावन भादो महल( जो अब चिड़िया घर में बना है) को शामिल किया गया है। 1842 में नवाब अमजद अली खान ने इसका नाम aaliya e hazrat के नाम स हज़रत गंज रख दिया। 
Ghandhi प्रतिमा पार्क में फाँसी पाने वाले शहीदों के नाम का पत्थर  आज़ादी के दीवाने की यादें ताज़ा करता है। 

कैथड्रल के साथ ही south मुखी हनुमान मंदिर , हलवासिया स्ट्र्रेट , साहू सिनेमा, lovelen मार्किट हज़रात गंज की शान बढ़ाते है।

तहज़ीब के शहर इ लखनऊ के चौथे नवाब आसिफ ओ उद्दोला ने अपने शासन काल में ( 1748- 1789) में थोक बाजार के रूप में yahiyaganj मार्किट की stapna की।
इनका दूसरा नाम यहिया अली था।

चौथे नवाब ने अपने शासनकाल के अवैध की राजधानी को फैज़ाबाद से बदलकर lucknow कर दिया।
कहते है कि गुरु गोविंद सिंह 1672 में 6 वर्ष की आयु में यहियागंज गुरूद्वारे आये थेगुरु गोविंद द्वारा हस्त लिखित गुरुग्रंथ साहिब भी गुरुद्वारा में मौजूद है।

गोलागंज में रखा जाता था गोला बारूद - 
नवाब कल के समय की क्रिसचयन कॉलेज के पास युद्ध के लिए हथियार के साथ गोलाबारूद रखा जाता था। अँगरेज़ आये तो उन्होंने भी यहाँ कोई बदलाव नहीं किया और इसका नाम चलने दिया। city station के पास  से लेकर जुबली कॉलेज तक का इलाके इसी में आता है । dufrin और बलराम पुर अस्पताल के इस chetra में हिन्दू मुस्लिम एक साथ रहते थे । इसी को ध्यान में रखकर यहाँ अस्पातल की stapna की गयी थी। 
गोलागंज के पास मौलवीगंज में स्तापित मकबरा आलिया भी मुस्लिम समुदाय को अपनी और खिंचता है। 
केसरबाग और कलेक्ट्रेट का छेत्र भी इसी का हिसा है।

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